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शनिवार, 30 मार्च 2024

ऐसे भी जिया जाता है

(अनीता रूबी मैडम को समर्पित)

विदाई में हमेशा 
जुदाई की बात होती है। 
पर आज 
मिलने की बात करते हैं। 
यूँ तो जीवन में 
हज़ारों लोगों से 
मिलना होता है। 
पर कुछ लोगों का मिलना 
संयोग नहीं 
क़िस्मत का लिखा होता है। 

तुम ही सोचो न!
तुमसे न मिले होते हम

तो कैसे जान पाते 

कि कैसे जिया जाता है?

तुम ही बताओ!

कैसे पता चलता कि

ज़िंदादिली क्या होती है?

आज में जीना क्या होता है?

यूँ ही खुश होना क्या होता है?

अपनी उपस्थिति मात्र से 

चेहरों पर रौनक,

होठों पर मुस्कुराहट

हँसी में खिलखिलाहट

पिरोयी जा सकती है;

कैसे समझ पाते हम!

तुमसे न मिले होते 

तो कैसे जानते कि

ऐसे भी हुआ जाता है!


सुबह-सुबह के ठहाकों के 

कुछ टुकड़े तुम्हारे ही तो 

दिए होते हैं।

“ऐ लड़की देख न! 

मेरा नया कुर्ता तो देख,

कुर्ते में पॉकेट भी है,

अरे बुद्धु! 

पॉकेट में हाथ डालकर देख न।

छूकर तो देख

कपड़ा कितना अच्छा है!”

कान की बाली भी देख!

कितनी मासूमियत से 

यह सब कहकर 

बड़ी सरलता से 

बता दिया है तुमने कि 

ऐसे भी जिया जाता है!


©️तनया ताशा

सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

हरिशंकर परसाई

परसाई जी मेरे प्रिय लेखक हैं। यों तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि जिन्होंने भी परसाई जी को पढ़ा होगा, उनकी ‘प्रिय लेखकों’ की सूची में परसाई जी को स्थान अवश्य प्राप्त हुआ होगा। परसाई जी हिंदी के उन विरल लेखकों में से हैं जिन्होंने व्यंग्य को अपने लेखन और अभिव्यक्ति का आधार बनाया है। उनके लेखन से हास्य की सृष्टि होती है, परंतु यह हँसी ठहाके वाले हँसी नहीं है, बल्कि किसी उचित कटाक्ष पर अधरों के कोनों में स्वतः आने वाली मुसकान है। उन्हें पढ़ते हुए लगता है, जैसे वे हमारे ऊपर हो रहे तमाम अन्यायों पर निरंतर व्यंग्य बाण छोड़ते जा रहे हैं। कभी-कभी ये व्यंग्य बाण हमारे ऊपर भी छोड़े गए प्रतीत होते हैं। उनका व्यंग्य, दर्पण की भाँति हमें हमारी असलियत दिखाने लगता है। अनायास यह अनुभूति होती है कि दूध के धुले और निष्पाप तो हम स्वयं भी नहीं हैं। कलंक के छींटे हम पर भी आ गिरते हैं। कई बार परसाई जी स्वयं पर व्यंग्य करते देखे जा सकते हैं। उनकी निडर और बेबाक लेखन शैली को पढ़ते हुए लगता है कि उन्हें कहीं से अभयदान मिला हुआ है कि वे चाहे प्रतिष्ठित से प्रतिष्ठित व्यक्ति पर, प्रशासन पर, समाज व्यवस्था पर या तथाकथित धर्म के ठेकेदारों पर कटाक्ष करें, उनका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता। अन्यथा इस अदम्य निर्भयता का तो केवल एक ही कारण मुझे समझ में आता है कि उन्हें अपनी बेबाकी के अच्छे-बुरे परिणाम अथवा उनके बाणों से आहत लोगों और व्यवस्था की प्रतिक्रिया से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे ‘जनता के निर्भीक लेखक’ हैं। नैतिकता और आदर्शों के तमाम ढकोसलों और मुखौटों को उन्होंने निर्दयता से अपने लेखन में निरावृत्त किया है।

© तनया ताशा

गुरुवार, 31 अगस्त 2023

दीप प्रज्ज्वलन

ज्योति की कोई शिखा 
भीतर कहीं जलती रहे। 
प्रज्ज्वलित हो पुण्य सबके 
पाप-पाखंड भस्म हो,
लौ इतनी तीव्र हो कि
राख बन जाए कलुष। 
और इसकी रोशनी में 
कालिमा मिटती रहे।

स्वागत

आगमन से आपके, 
हर्ष गदगद प्राण हैं। 
आतिथ्य के सौभाग्य का,
हमको विनम्र अभिमान है। 
किस तरह से हम जताएँ 
आभार अपना पाहुना 
खग-विहग के, स्वरों में भी 
आनंद का ही गान है। 
 
आरंभ का, और अंत का भी 
यह समर्पण लीजिए। 
बहुमूल्य अपने समय का 
वरदान हमको दीजिए। 
प्रणिपात मुद्रा में खड़े हैं 
देखिए, चारों दिशाएँ 
स्थान अपना कर ग्रहण 

कृतार्थ हमको कीजिए।

सोमवार, 31 जुलाई 2023

साथ का आभार

(देबजानी बनर्जी मैडम को समर्पित)

इस तरह से 
तुम हृदय में 
स्थान धरकर 
जा रहे हो,
कि हमारे 
अश्रु जल भी 
मौन हैं,
बहते नहीं हैं,
रुक गए हैं। 
आर्द्रता भावों में है,
भीगे हुए से 
कंठस्वर हैं। 
हम विवश हैं 
क्योंकि तुमको 
रोक पाएँगे नहीं,
तुम रुकोगे किस तरह?
यह तुम्हारे वश नहीं। 
जाओ किन्तु,
जाते हुए तुम 
साथ का 
आभार ले लो,
और अपने कंठस्वर से 
आशीष का 
वरदान दे दो। 

©️तनया ताशा





शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

याद करना आज का दिन

माँग लो आकाश सारा,

पूरी धरती माँग लो,

सृष्टि का कण-कण तुम्हारा,

जिस घड़ी तुम ठान लो। 

माँग लेना तुम किनारा,

मझधार से लेकिन न डरना 

जूझना तब तक कि जब तक 

बन न जाओ खुद सहारा। 


मुश्किलों की राह में भी 

जो अडिग रह पाओ पथ पर 

देखना तुमको मिलेगा 

धैर्य का वरदान भर-भर। 

जब कभी पथ से भ्रमित हो 

लक्ष्य से छूटे निशाना,

याद करना आज का दिन 

और ऐसे सैकड़ों दिन,

सीखा हुआ सब याद करना,

साधना तुम तब निशाना। 


एक दिन ब्रह्मांड के  

सारे रहस्य जान लोगे,

जिस दिशा में तुम बढ़ोगे,

उस दिशा को जीत लोगे,

मुट्ठियों में भींच लेना,

प्राप्य है सब सुख तुम्हारा।  


मान लो कि हैं अंधेरे 

और चतुर्दिक भय के घेरे,

आत्मबल से जीत लेना 

ढूँढना अपने सवेरे। 

सामने जब हो अनिश्चित,

अज्ञात की चिंता से धूमिल 

मन तुम्हारा डगमगाए,

याद करना आज का दिन 

और ऐसे सैकड़ों दिन 

सीखा हुआ सब याद करना,

हल मिलेगा तुमको निश्चित। 


याद रखना,

आगे तुम जितना बढ़ोगे,

ऊँचा तुम जितना उड़ोगे,

उपलब्धियों से दंभ होगा,

प्राप्तियों का मान होगा,

इसलिए अपनी जड़ों को

धरती में मज़बूत रखना।

दुनिया तुम्हें भरमायेगी,

हर घड़ी ललचायेगी,

तुम विनय और शील से

जीत लेना सब प्रलोभन।

याद करना आज का दिन,

और ऐसे सैकड़ों दिन

सीखा हुआ सब याद करना,

और निरंतर बढ़ते जाना।


याद करना आज का दिन,

और ऐसे सैकड़ों दिन।

Ⓒ तनया ताशा




रविवार, 8 मई 2022

कितनी दूर

माँ जब छोड़कर
चली जाती है,
तो कितनी दूर जाती होगी?
मान लो, 
बहुत साल पहले 
छूट गया हो 
माँ का आँचल,
दस, बीस या 
इतने साल
कि गिनने में
वक्त लग जाए,
तो भी कितनी दूर 
गयी होती है माँ?
अगर माँ की 
अलमारी से,
साड़ियों से 
उसकी उलझनें 
झाँकती हो अब भी;
रसोई की गंध में,
सब्ज़ियों की छौंक में अगर
माँ के हाथों का स्वाद 
रह गया हो, 
तो कितनी दूर 
जा पायी होगी माँ?
घर की खिड़कियों 
को ही ले लो,
उनसे आती हवा में,
या कभी 
बारिश के छींटों में सवार होकर 
उसकी ममता 
पहुँच जाती हो अगर,
तो कितना ही सफ़र तय 
कर पायी होगी माँ?
कितनी दूर गयी होगी माँ?
कितनी दूर जा पायी होगी माँ?
तनया ताशा