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रविवार, 13 नवंबर 2011

तुम्हारी नज़रों से बचकर भी...

मैं तुम्हें
देख लेना चाहती हूँ
एक बार,
कभी-कभार
सभा में, पंक्ति में,
वहाँ भी जहाँ तुम्हारे सिवा
कोई न हो,

तुम्हारी नज़रों से बचकर भी
मेरी आँखें तुम्हें
देख लेना चाहती है एकबार...

©तनया 

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