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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

सपने


सपने आते हैं
बेझिझक मेरे पास,
तकिये की सिलवटों
में आकर पनाह लेते हैं!
ये भागते हैं मेरे पीछे
कुछ इस तरह...
जैसे काम नहीं चलता
इनका मेरे बिना...
मैं इन्हें छू सकती हूँ
महसूस कर सकती हूँ...
पर जाने क्यों...
पा नहीं सकती...
वैसे ही जैसे
शोपर्स स्टॉप की
कोई महंगी
आकर्षक, अत्याधुनिक
चीज़ हो वह...
जिन्हें देखकर...
चौंधिया जाती हैं
आँखें...

...सपनों को पा लेना
विचित्र होता होगा...
यह कोई दूसरी दुनिया
की बात होगी...
...यह तड़प ज़रूर बड़ी है,
लेकिन... इन्हें
न पा सकना ही जीवन है...

मेरा होना ऐसा ही है,
सपने पीछा करते हैं...
ऐसे जैसे मेरे बिना
उनका काम नहीं चलता..
पर वो मेरी होना नहीं चाहती...
सपने, दोस्त है, साथी है,
हमसफ़र है...
इन्हें पाना मुमकिन नहीं...

मेरा होना ऐसा ही है।

©तनया



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