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सोमवार, 11 दिसंबर 2017

पन्ना

ज़िन्दगी की फितरत  है कि 
उलझती जाती है यह...
तह खोलते हैं जब 
मुड़े  हुए पन्नों के, तो 
माज़ी की धूल हटती जाती है...
उंगलियों के बीच से 
रेत की तरह 
फिसलते हुए वक्त को 
जब पकड़े रहना 
मुमकिन नहीं लगता 
तो हम किताब के पन्ने की तरह
आज का कोई कोना
यूँही मोड़ लेते हैं
कल के लिए...

© तनया

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

अधूरे

और यह अध्याय
यूँ पूरा हुआ जीवन का...
अधूरी रही बातें,..
अधूरे रहे सपने...
अधूरे रहे मनमुटाव...
न हुआ सुखांत,
न ही दुखांत...
खुश रहने के,
साथ निभाने के
वादों से हुए आज़ाद...

©तनया