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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

क्या दूँ तुम्हें दोस्त

क्या दूँ तुम्हें दोस्त! 

एक खालीपन है भीतर...

तुम्हारी विशालता को पा लेने की चाहत है....

क्या दूँ कि कम न पड़े अपनत्व...

 

तुम्हारा होना ज़रूरी है..

ज़रूरी है मेरा होना भी

ज़रूरी है शून्य का भर जाना...

क्या दूँ तुम्हें कि 

बूंदों से बूँद मिले,

भर जाए मेरा शून्य

और खाली न हो 

तुम्हारा सागर भी...

 

साथी!

स्मृतियों के गह्वर में ही

भले रहे तुम्हारा होना

क्या दूँ तुम्हें कि 

भीतर कहीं तुम रहो ही...

क्या दूँ तुम्हें कि 

साहस कम न पड़े 

यह कहने की

कि ज़रूरी हो तुम

 

मेरे साथी!

क्या दूँ तुम्हें कि

शब्द कम न पड़े कभी 

बातें कभी न खत्म हो

मंजिल अलग, राह इतर

फिर भी एकांत के 

हमसफ़र बने रह सके....

 

क्या दूँ तुम्हें दोस्त!

कि तुम बने रह सको विशाल

और मेरा होना हो सके 

स्वच्छ, निर्मल, निष्पाप....

क्या दूँ तुम्हें दोस्त! 

 

©तनया ताशा



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