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शनिवार, 30 मार्च 2024

ऐसे भी जिया जाता है

(अनीता रूबी मैडम को समर्पित)

विदाई में हमेशा 
जुदाई की बात होती है। 
पर आज 
मिलने की बात करते हैं। 
यूँ तो जीवन में 
हज़ारों लोगों से 
मिलना होता है। 
पर कुछ लोगों का मिलना 
संयोग नहीं 
क़िस्मत का लिखा होता है। 

तुम ही सोचो न!
तुमसे न मिले होते हम

तो कैसे जान पाते 

कि कैसे जिया जाता है?

तुम ही बताओ!

कैसे पता चलता कि

ज़िंदादिली क्या होती है?

आज में जीना क्या होता है?

यूँ ही खुश होना क्या होता है?

अपनी उपस्थिति मात्र से 

चेहरों पर रौनक,

होठों पर मुस्कुराहट

हँसी में खिलखिलाहट

पिरोयी जा सकती है;

कैसे समझ पाते हम!

तुमसे न मिले होते 

तो कैसे जानते कि

ऐसे भी हुआ जाता है!


सुबह-सुबह के ठहाकों के 

कुछ टुकड़े तुम्हारे ही तो 

दिए होते हैं।

“ऐ लड़की देख न! 

मेरा नया कुर्ता तो देख,

कुर्ते में पॉकेट भी है,

अरे बुद्धु! 

पॉकेट में हाथ डालकर देख न।

छूकर तो देख

कपड़ा कितना अच्छा है!”

कान की बाली भी देख!

कितनी मासूमियत से 

यह सब कहकर 

बड़ी सरलता से 

बता दिया है तुमने कि 

ऐसे भी जिया जाता है!


©️तनया ताशा