ज्योति की कोई शिखा
भीतर कहीं जलती रहे।
प्रज्ज्वलित हो पुण्य सबके
पाप-पाखंड भस्म हो,
लौ इतनी तीव्र हो कि
राख बन जाए कलुष।
और इसकी रोशनी में
कालिमा मिटती रहे।
भीतर कहीं जलती रहे।
प्रज्ज्वलित हो पुण्य सबके
पाप-पाखंड भस्म हो,
लौ इतनी तीव्र हो कि
राख बन जाए कलुष।
और इसकी रोशनी में
कालिमा मिटती रहे।