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गुरुवार, 31 अगस्त 2023

दीप प्रज्ज्वलन

ज्योति की कोई शिखा 
भीतर कहीं जलती रहे। 
प्रज्ज्वलित हो पुण्य सबके 
पाप-पाखंड भस्म हो,
लौ इतनी तीव्र हो कि
राख बन जाए कलुष। 
और इसकी रोशनी में 
कालिमा मिटती रहे।

स्वागत

आगमन से आपके, 
हर्ष गदगद प्राण हैं। 
आतिथ्य के सौभाग्य का,
हमको विनम्र अभिमान है। 
किस तरह से हम जताएँ 
आभार अपना पाहुना 
खग-विहग के, स्वरों में भी 
आनंद का ही गान है। 
 
आरंभ का, और अंत का भी 
यह समर्पण लीजिए। 
बहुमूल्य अपने समय का 
वरदान हमको दीजिए। 
प्रणिपात मुद्रा में खड़े हैं 
देखिए, चारों दिशाएँ 
स्थान अपना कर ग्रहण 

कृतार्थ हमको कीजिए।