(देबजानी बनर्जी मैडम को समर्पित)
इस तरह से
तुम हृदय में
स्थान धरकर
जा रहे हो,
कि हमारे
अश्रु जल भी
मौन हैं,
बहते नहीं हैं,
रुक गए हैं।
आर्द्रता भावों में है,
भीगे हुए से
कंठस्वर हैं।
हम विवश हैं
क्योंकि तुमको
रोक पाएँगे नहीं,
तुम हृदय में
स्थान धरकर
जा रहे हो,
कि हमारे
अश्रु जल भी
मौन हैं,
बहते नहीं हैं,
रुक गए हैं।
आर्द्रता भावों में है,
भीगे हुए से
कंठस्वर हैं।
हम विवश हैं
क्योंकि तुमको
रोक पाएँगे नहीं,
तुम रुकोगे किस तरह?
यह तुम्हारे वश नहीं।
जाओ किन्तु,
जाते हुए तुम
साथ का
आभार ले लो,
और अपने कंठस्वर से
आशीष का
वरदान दे दो।
यह तुम्हारे वश नहीं।
जाओ किन्तु,
जाते हुए तुम
साथ का
आभार ले लो,
और अपने कंठस्वर से
आशीष का
वरदान दे दो।
©️तनया ताशा