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सोमवार, 29 नवंबर 2021

प्रेम यह मेरा

सर्द सुबह में तुम संग
थोड़ा धूप को बुनकर,
नर्म-गर्म उस शॉल को ओढ़े,
हवा के संग उड़ता जाता है।

शाम ढले तो इंद्रधनुष के
रंगों को जेबों में भरकर,
'मटमैला' भी उसमें जोड़कर
तुम तक वापस आ जाता है।

प्रेम यह मेरा, रोज़ तुम्हारी
पेशानी के शिकन मिटाने, 
कानों में संगीत घोलकर 
जीवन को गाना चाहता है।

प्रेम यह मेरा, दिनचर्या की
उमस, थकन और ऊब मिटाने,
शाम की चाय में वक्त रोककर 
खामोशी सुनना चाहता है।

न ठहरों यदि कुछ लम्हों में,
अपने पर बीती साझा करने,
या पंख काट दो भावों के तो 
प्रेम बहुत भारी लगता है।

©तनया ताशा



शनिवार, 27 नवंबर 2021

तुम्हें लगा


तुम्हें लगा, तुम
छोड़ गए हो,
हम दोनों को 
तोड़ गए हो।
सच तो यह है,
बहुत समय से 
साथ तुम्हारे
मैंने खुदको
खोते देखा था,
दूर कहीं
थोड़ा-थोड़ा
जाते देखा था।

तुम्हें लगा, तुम 
रूठ गए थे,
भीतर-भीतर 
टूट रहे थे।
सच तो यह है,
बहुत समय से,
तुमसे नाता
टूट रहा था,
साथ हमारा 
छूट रहा था,
मेरे रूठे-टूटे सपने 
जगह-जगह पर 
बिखर रहे थे। 

मैं आज भी 
खुद को
ढूँढ रही हूँ ,
रूठे सपने 
मना रही हूँ,
बिखरे टुकड़े 
चुन रही हूँ,
जोड़ रही हूँ।

© तनया ताशा











शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

मुक्ति

बाँधने देखो 
कितने आयें।
मीठे सपने, 
प्यार की बातें, 
कितने सारे
वादे लायें।

लेकिन जो भी
बाँधने आयें,
सबकुछ लाये, 
प्रेम-सना वह 
डोर न लाए, 
जिससे मेरी  
रूह बंध जाये। 

पागल मन तो 
ढूँढ रहा है,
ऐसा कोई 
बाँधने वाला,
जो बंधन को
मुक्ति बनाये।

© तनया ताशा   

गुरुवार, 25 नवंबर 2021

इतनी-सी बात

हम दोनों की चाहत में,

बस इतनी - सी बात है;

हम एक समय में ज़िन्दा हैं,

बस इतना - ही साथ है,

और इतनी - सी बात है।

© तनया



शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

प्रेमी - मन

सुनो, तुम्हारे भीतर जो 
प्रेमी बसता है,
उसे कभी न मरने देना।
जीवन झंझावातों से 
होकर गुज़रेगा।
उनसे लड़कर,
इच्छाओं की बलि चढ़ाकर 
हँस लेते हो,
प्रेमी-मन को कभी-कभी 
हँस लेने देना।
© तनया ताशा  



खिड़की

पूछते हो,
आवाज़ यह कैसी,
क्या टूटा है?

टूटा क्या है! 
सपनों का वह
शहर नहीं था,
काँच का कोई
महल नहीं था।
अरमानों की 
एक खिड़की थी,
जिसपर अपनी 
कोहनी टिकाए
साथ खड़े 
प्रेमी-जोड़े को,
वह जो एक 
मंज़र दिखता था,

वह छूटा हैै!

© तनया ताशा 

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

तोहफ़ा

यूँ तो तुमसे जो भी मिला, 
हर सामान सँभाले रखा है।
हमने-तुमने रोका हुआ 
हर लम्हा थामे रखा है।

चुप्पी, सिसकी, तन्हाई का
बर्दाश्त भी जवाँ रखा हैै,
कहीं भूल न जाए हम माज़ी, 
हर ज़ख्म हरा रखा है।

© तनया ताशा 







बुधवार, 10 नवंबर 2021

अनसुनी कोई बात

अनसुनी की गई बात
अक्सर आह-भरी
दिल की बात होती है,
कहनेवाले को बेहद 
अज़ीज़ होती है
अनसुनी की गई बात;
होती है दिन भर की बीती और
थकान से मुक्ति का ज़रिया।

अनसुनी की गई बात
अक्सर आरंभ के 
पहले हो चुका अंत होती है,
गहरे संकोच की पहली
हिम्मत होती है
अनसुनी की गई बात;
या होती है कुछ जोड़े रखने की 
किसी की आखरी कोशिश।

अनसुनी की गई बात 
कहे जाने के बावजूद 
अनकही रह जाती है!

अनकही रह गई बातों को
चुप्पियों में सी दिया जाता है।
सुने जाने की राहत के बिना ही
जीवन जी लिया जाता है।

Ⓒतनया ताशा 




बुधवार, 3 नवंबर 2021

जी सके

कुछ इस तरह जीते हैं हम हर रोज़,
कि एक रोज़ और जी सकें...
आँखों में बचा ख्वाब का कोई टुकड़ा,
चलते जाने की वजह बन सके।
© तनया