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बुधवार, 3 नवंबर 2021

जी सके

कुछ इस तरह जीते हैं हम हर रोज़,
कि एक रोज़ और जी सकें...
आँखों में बचा ख्वाब का कोई टुकड़ा,
चलते जाने की वजह बन सके।
© तनया

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