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शुक्रवार, 19 नवंबर 2021
खिड़की
पूछते हो,
आवाज़ यह कैसी,
क्या टूटा है?
टूटा क्या है!
सपनों का वह
शहर नहीं था,
काँच का कोई
महल नहीं था।
अरमानों की
एक खिड़की थी,
जिसपर अपनी
कोहनी टिकाए
साथ खड़े
प्रेमी-जोड़े को,
वह जो एक
मंज़र दिखता था,
वह छूटा हैै!
© तनया ताशा
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