मैं लिख सकती
तो ज़रूर लिखती,
कह सकती
तो ज़रूर कहती।
संग देखे होते
यदि उतार-चढ़ाव,
झेले होते यदि
जीवन के झंझावात
हमने साथ,
जानती होते यदि
तुम्हारे सुख-दुःख,
त्याग और समर्पण,
मोह से बँधे रिश्तों की
कोई खबर,
तो ज़रूर बताती
तुम्हारे जीवन का सार।
छोटे-छोटे अध्यायों को
क्रमबद्ध साझा करती
सबके साथ।
असमर्थ हूँ,
असमर्थ हूँ, इसलिए,
कर जोड़कर
इतनी ही याचना,
इतना ही आवेदन,
बस इतना-सा समर्पण
कि बाद के लिए रखा हुआ
सारा जी लेना,
जो भी
असम्भव लगता रहा हो,
वह सब पा लेना।
जीना,
खूब जीना,
खुलकर जीना,
टूटकर जीना।
प्रोत्साहन हो ही तुम,
प्रेरणा बन जाना।
©️तनया ताशा