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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

जाना

‘जाने’ के भी 
कई क़ायदे होते हैं।
तरह-तरह का ‘जाना’
होता है।
उठकर चले ‘जाना’,
थोड़ी देर के लिए ‘जाना’,
लौट आने के लिए ‘जाना’
या हमेशा के लिए चले ‘जाना’।
जाने देने की भी
सैकड़ों रिवायतें होती हैं।
कभी ‘जल्दी लौट आना’ 
कहकर जाने देना।
कभी ‘फिर मिलेंगे’ 
कहकर विदा करना।
या कभी आख़री मुलाक़ात को
दिल के किसी कोने के
हवाले करके
मौन मुस्कान के साथ
अलविदा कह देना।
‘जाना’ जब बेहद
ज़रूरी हो जाता है,
तब रह गए लोगों 
के दिलों में छोड़े निशान से
दुआ निकलती है
जाने वालों के लिए।
‘चले जाना’ 
आसान नहीं होता,
न ही जाने देना 
आसान होता है।
जाने वालों के ज़हन में,
रह गए लोगों की बातों में,
साथ जिए लम्हें,
बने रहते हैं मुद्दतों बाद भी,
हँसी और ठहाकों में।
इसलिए जाते हुए लोगों से 
यह कहना ज़रूरी है कि
अब तक जहाँ रहे,
वहाँ अपना होना 
ज़रूर याद रखना,
हमेशा याद रखना।
Ⓒ तनया ताशा

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