जो आज कहा है
तुमने साथी
कल फिर कह देना।
और किसी दिन
बीच बात में,
बिना वजह ही
फिर से कहना।
नाराज़ी में, और बहस में
अनचाही कड़वी बातें जब हों,
थोड़ा रुककर याद दिलाना
मेरी खातिर होना तुम्हारा।
कभी कभी ही और हमेशा,
आसानी में, मुश्किल में भी
मुझे पता होगा पहले ही,
कितना है गहरा प्रेम तुम्हारा,
फिर भी मुझसे कहते रहना।
कभी चुराई हुई नजर से
कभी दबी मुस्कान में ढककर
उसी बात को दोहरा देना।
और, समय की
खामोशी में, कोलाहल में
सुनना साथी
मेरा कहना।
© तनया ताशा