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रविवार, 8 मई 2022

कितनी दूर

माँ जब छोड़कर
चली जाती है,
तो कितनी दूर जाती होगी?
मान लो, 
बहुत साल पहले 
छूट गया हो 
माँ का आँचल,
दस, बीस या 
इतने साल
कि गिनने में
वक्त लग जाए,
तो भी कितनी दूर 
गयी होती है माँ?
अगर माँ की 
अलमारी से,
साड़ियों से 
उसकी उलझनें 
झाँकती हो अब भी;
रसोई की गंध में,
सब्ज़ियों की छौंक में अगर
माँ के हाथों का स्वाद 
रह गया हो, 
तो कितनी दूर 
जा पायी होगी माँ?
घर की खिड़कियों 
को ही ले लो,
उनसे आती हवा में,
या कभी 
बारिश के छींटों में सवार होकर 
उसकी ममता 
पहुँच जाती हो अगर,
तो कितना ही सफ़र तय 
कर पायी होगी माँ?
कितनी दूर गयी होगी माँ?
कितनी दूर जा पायी होगी माँ?
तनया ताशा





शनिवार, 30 अप्रैल 2022

असमर्थ हूँ

(पुतुल घोष मैडम को समर्पित)

मैं लिख सकती
तो ज़रूर लिखती,
कह सकती
तो ज़रूर कहती।
संग देखे होते 
यदि उतार-चढ़ाव,
झेले होते यदि 
जीवन के झंझावात
हमने साथ,
जानती होते यदि
तुम्हारे सुख-दुःख,
त्याग और समर्पण,
मोह से बँधे रिश्तों की
कोई खबर,
तो ज़रूर बताती
तुम्हारे जीवन का सार।
छोटे-छोटे अध्यायों को
क्रमबद्ध साझा करती
सबके साथ।
असमर्थ हूँ,
असमर्थ हूँ, इसलिए,
कर जोड़कर
इतनी ही याचना,
इतना ही आवेदन,
बस इतना-सा समर्पण
कि बाद के लिए रखा हुआ
सारा जी लेना,
जो भी 
असम्भव लगता रहा हो,
वह सब पा लेना।
जीना,
खूब जीना,
खुलकर जीना,
टूटकर जीना।
प्रोत्साहन हो ही तुम,
प्रेरणा बन जाना।

©️तनया ताशा

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

जाना

‘जाने’ के भी 
कई क़ायदे होते हैं।
तरह-तरह का ‘जाना’
होता है।
उठकर चले ‘जाना’,
थोड़ी देर के लिए ‘जाना’,
लौट आने के लिए ‘जाना’
या हमेशा के लिए चले ‘जाना’।
जाने देने की भी
सैकड़ों रिवायतें होती हैं।
कभी ‘जल्दी लौट आना’ 
कहकर जाने देना।
कभी ‘फिर मिलेंगे’ 
कहकर विदा करना।
या कभी आख़री मुलाक़ात को
दिल के किसी कोने के
हवाले करके
मौन मुस्कान के साथ
अलविदा कह देना।
‘जाना’ जब बेहद
ज़रूरी हो जाता है,
तब रह गए लोगों 
के दिलों में छोड़े निशान से
दुआ निकलती है
जाने वालों के लिए।
‘चले जाना’ 
आसान नहीं होता,
न ही जाने देना 
आसान होता है।
जाने वालों के ज़हन में,
रह गए लोगों की बातों में,
साथ जिए लम्हें,
बने रहते हैं मुद्दतों बाद भी,
हँसी और ठहाकों में।
इसलिए जाते हुए लोगों से 
यह कहना ज़रूरी है कि
अब तक जहाँ रहे,
वहाँ अपना होना 
ज़रूर याद रखना,
हमेशा याद रखना।
Ⓒ तनया ताशा

मंगलवार, 8 मार्च 2022

कहते रहना

जो आज कहा है 

तुमने साथी

कल फिर कह देना।

और किसी दिन 

बीच बात में,

बिना वजह ही 

फिर से कहना।

नाराज़ी में, और बहस में

अनचाही कड़वी बातें जब हों,

थोड़ा रुककर याद दिलाना

मेरी खातिर होना तुम्हारा।

कभी कभी ही और हमेशा,

आसानी में, मुश्किल में भी 

मुझे पता होगा पहले ही,

कितना है गहरा प्रेम तुम्हारा,

फिर भी मुझसे कहते रहना।

कभी चुराई हुई नजर से 

कभी दबी मुस्कान में ढककर 

उसी बात को दोहरा देना।

और, समय की

खामोशी में, कोलाहल में 

सुनना साथी 

मेरा कहना।

© तनया ताशा