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सोमवार, 29 नवंबर 2021

प्रेम यह मेरा

सर्द सुबह में तुम संग
थोड़ा धूप को बुनकर,
नर्म-गर्म उस शॉल को ओढ़े,
हवा के संग उड़ता जाता है।

शाम ढले तो इंद्रधनुष के
रंगों को जेबों में भरकर,
'मटमैला' भी उसमें जोड़कर
तुम तक वापस आ जाता है।

प्रेम यह मेरा, रोज़ तुम्हारी
पेशानी के शिकन मिटाने, 
कानों में संगीत घोलकर 
जीवन को गाना चाहता है।

प्रेम यह मेरा, दिनचर्या की
उमस, थकन और ऊब मिटाने,
शाम की चाय में वक्त रोककर 
खामोशी सुनना चाहता है।

न ठहरों यदि कुछ लम्हों में,
अपने पर बीती साझा करने,
या पंख काट दो भावों के तो 
प्रेम बहुत भारी लगता है।

©तनया ताशा



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