किसी ने डोर छोड़ दी अचानक...
जितनी बची हैं हाथों में रेशे...
वो काफी नहीं हैं...
पुराने मुड़े हुए
किसी पन्ने की तरह
है ये...
खोलो तो फट जाती हैं...
भीतर से बस एक आवाज़ आती है...
सपने से जागने का समय है...
तह करने का समय है...
समेटने का समय है...
सिलवटें तो रहेंगी...
फिर भी
जीवन से किया
वादा है...
निभाना है...
©तनया
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