लड़की होने के अहसास के साथ
हर लड़की यह जान जाती है कि
लड़की होना
आसान नहीं...
लड़की होने की मुश्किल से भी बड़ा सवाल
लड़की के लिए
उसके औचित्य का सवाल है...
लड़की होते ही
बाप की परेशानी का
सबसे बड़ा हिस्सा बनना
खलता है उसे...
इसलिए लड़की अपने कदम
सोच-समझकर
बढ़ाना चाहती है ताकि
पिता की परेशानी कदम न बढ़ाये
बीमारी की ओर...
यूँ ही गुज़र जाती लड़की की ज़िंदगी
लिज़लिज़ेपन में
तो आसान ही होता लड़की होना...
मगर लड़की होना
होता है मुश्किल...
हर लड़की यह समझ जाती है तब
जब वह बड़ी होने लगती है
और प्रेम कर बैठती है किसी से...
प्रेम की उन्मुक्तता और
पिता के सम्मान के बीच की जद्दोजहद से अक्सर
निकल नहीं पाती लड़की
और अक्सर खुद को
सही साबित नहीं कर पाती....
लड़की होने की मुश्किल से
फिर एकबार सामना
होता है उसका
जब एक अनचाहे आदमी को
अपना बनाने की
मजबूरी से गुज़रती है लड़की
कि वह आदमी बनता जाता है पति और प्रेमी
रह जाता है बस आदमी...
माँ होने के सुख के साथ
औरत बनी लड़की
ज़िम्मेदार हो जाती है...
अक्सर जब निभती नहीं
ज़िम्मेदारी बेख्याली में,
तब झिडकियों में उसे
अहसास दिलाया जाता है
उसके लड़की होने का...
और उसे शर्म आती है लड़की होने पर
क्योंकि लड़की होने का अहसास अक्सर
छोटेपन से जुदा नहीं होता....
इक्कीसवीं सड़ी की
लड़की की तस्वीर
अलग है थोड़ी...
क्योंकि इस लड़की के कदम
बहकते हैं कई बार,
अपने मन की करने में,
ऊँचा उड़ने में...
'कम्पलीट वुमन' के सांचे में
जब ढल नहीं पाती वह,
तब लड़की होना
मुश्किल लगता है उसे...
लेकिन जब पढ़ती है लड़की,
मुश्किल नहीं लगता उसे
अपना होना
अक्षरों से शब्द और
शब्दों से वाक्य बनाती
लड़की का वजूद
निखरता है ऐसे
जैसे पत्थर पर उकेरा हो
किसी ने कोई चेहरा,
संख्याओं का गणित
सुलझाती लड़की
जोड़ती-घटाती है
अपने अनुभव
और चढ़ती जाती है
सफलता की सीढियाँ...
लड़की होने की सारी मुश्किलें
तब बेमाने लगने लगती हैं....
©तनया
हर लड़की यह समझ जाती है तब
जब वह बड़ी होने लगती है
और प्रेम कर बैठती है किसी से...
प्रेम की उन्मुक्तता और
पिता के सम्मान के बीच की जद्दोजहद से अक्सर
निकल नहीं पाती लड़की
और अक्सर खुद को
सही साबित नहीं कर पाती....
लड़की होने की मुश्किल से
फिर एकबार सामना
होता है उसका
जब एक अनचाहे आदमी को
अपना बनाने की
मजबूरी से गुज़रती है लड़की
कि वह आदमी बनता जाता है पति और प्रेमी
रह जाता है बस आदमी...
माँ होने के सुख के साथ
औरत बनी लड़की
ज़िम्मेदार हो जाती है...
अक्सर जब निभती नहीं
ज़िम्मेदारी बेख्याली में,
तब झिडकियों में उसे
अहसास दिलाया जाता है
उसके लड़की होने का...
और उसे शर्म आती है लड़की होने पर
क्योंकि लड़की होने का अहसास अक्सर
छोटेपन से जुदा नहीं होता....
इक्कीसवीं सड़ी की
लड़की की तस्वीर
अलग है थोड़ी...
क्योंकि इस लड़की के कदम
बहकते हैं कई बार,
अपने मन की करने में,
ऊँचा उड़ने में...
'कम्पलीट वुमन' के सांचे में
जब ढल नहीं पाती वह,
तब लड़की होना
मुश्किल लगता है उसे...
लेकिन जब पढ़ती है लड़की,
मुश्किल नहीं लगता उसे
अपना होना
अक्षरों से शब्द और
शब्दों से वाक्य बनाती
लड़की का वजूद
निखरता है ऐसे
जैसे पत्थर पर उकेरा हो
किसी ने कोई चेहरा,
संख्याओं का गणित
सुलझाती लड़की
जोड़ती-घटाती है
अपने अनुभव
और चढ़ती जाती है
सफलता की सीढियाँ...
लड़की होने की सारी मुश्किलें
तब बेमाने लगने लगती हैं....
©तनया
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