ढूँढा जिसको जगह-जगह, पाया उसको कहीं नहीं,
अलबेला वह 'मोह' किसी ख्वाब का बाशिंदा तो नहीं।
झूठ-फरेबी की महफ़िल में, सच्चे दिल का मान नहीं,
बेबाकी पर नाज़ जिसे था, आज वह शर्मिंदा तो नहीं।
जो पहरे लेकर फिरता है, उसका दिल आज़ाद नहीं,
मन-पिंजरे में कैद मगर बेचैन कोई परिंदा तो नहीं।
जो मरा-मरा सा दिखता है, चेहरे पर जिसके नूर नहीं,
समझौतों के बोझ के नीचे, देखो कहीं ज़िंदा तो नहीं।
© तनया
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