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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

ज़िंदा

ढूँढा जिसको जगह-जगह, पाया उसको कहीं नहीं,
अलबेला वह 'मोह' किसी ख्वाब का बाशिंदा तो नहीं।

झूठ-फरेबी की महफ़िल में, सच्चे दिल का मान नहीं,
बेबाकी पर नाज़ जिसे था, आज वह शर्मिंदा तो नहीं।

जो पहरे लेकर फिरता है, उसका दिल आज़ाद नहीं,
मन-पिंजरे में कैद मगर बेचैन कोई परिंदा तो नहीं।

जो मरा-मरा सा दिखता है, चेहरे पर जिसके नूर नहीं,
समझौतों के बोझ के नीचे, देखो कहीं ज़िंदा तो नहीं।

© तनया

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