हो सकता है कभी किसी दिन,
तुम्हें ढूँढती, शहर तुम्हारे आ जाऊँ,
या मैं तुमको
इक्का-दुक्का कवि-हृदय संग
'मीर' सुनाती मिल जाऊँ।
हो सकता है, कहीं भीड़ में
मिलकर भी पहचान न पाऊँ,
या मैं तुम्हारे
क्लांत हृदय और अवचेतन सेे
पूरी तरह विस्मृत हो जाऊँ।
हो सकता है, तुम आओ, पर
अपने कदम बढ़ा न पाऊँ,
या मैं तुम तक
चलते-चलते थक जाऊँ,
एक दिन आवारा कहलाऊँ।
हो सकता है अंत समय तक
मैं तुमको कहीं खोज न पाऊँ,
या मैं तुम्हारे
बंधन-व्याकुल प्रेमी-मन की
चिर प्रतीक्षा बन जाऊँ।
© तनया ताशा
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