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रविवार, 19 दिसंबर 2021

हो सकता है


हो सकता है कभी किसी दिन,
तुम्हें ढूँढती, शहर तुम्हारे आ जाऊँ,
या मैं तुमको 
इक्का-दुक्का कवि-हृदय संग
'मीर' सुनाती मिल जाऊँ।

हो सकता है, कहीं भीड़ में 
मिलकर भी पहचान न पाऊँ,  
या मैं तुम्हारे 
क्लांत हृदय और अवचेतन सेे
पूरी तरह विस्मृत हो जाऊँ। 

हो सकता है, तुम आओ, पर
अपने कदम बढ़ा न पाऊँ, 
या मैं तुम तक
चलते-चलते थक जाऊँ,
एक दिन आवारा कहलाऊँ।

हो सकता है अंत समय तक
मैं तुमको कहीं खोज न पाऊँ,
या मैं तुम्हारे 
बंधन-व्याकुल प्रेमी-मन की 
चिर प्रतीक्षा बन जाऊँ। 

© तनया ताशा



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