हर स्त्री में
प्रेमिका की
संभावना होती है।
लेकिन हर
स्त्री
प्रेमिका कहाँ
हो पाती है?
जो स्त्री
प्रेमिका होती
है,
वह लीक पर नहीं
चल पाती,
न किसी साँचे
में ढल पाती है।
अगर ढल जाती है
किसी साँचे में
कभी, तो
खाना परोसते
हुए भी वह
दिनचर्या की
नहीं होती,
घर सँवारते हुए
भी
रोज़मर्रा की
नहीं होती,
वह तुम्हें
सींचती तो है,
लेकिन तुम्हारी
नहीं होती।
वह तुम्हारे
भीतर छुपे
उस प्रेमी की
होती है,
जिसने कभी
झाँककर
प्रेम का
आश्वासन दिया था।
© तनया ताशा
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